वैवाहिक जीवन सुखमय एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु मनाया जाता है करवा चौथ पर्व: डॉ० सरिता।
राजकीय महाविद्यालय पाबौ, पौड़ी गढ़वाल मे हिंदी विभाग मे कार्यरत सहायक प्राध्यापिका डॉ० सरिता ने करवा चौथ पर्व के बारे मे विस्तृत रूप से जानकारी साझा करते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति मे जप, तप और व्रत का विशेष महत्व है।
भारतीय संस्कृति मे पुराणो व धार्मिक ग्रंथो मे व्रतो का विशेष उल्लेख देखने को मिलता है।
प्यार और विश्वास की अभिव्यक्ति से जुड़ा एक ऐसा ही व्रत है- करवा चौथ।
करवा चौथ शब्द दो शब्दो से मिलकर बना है करवा यानी मिट्टी का बर्तन और चौथ यानी चतुर्थी।
यह पर्व हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सुहागिन महिलाओ द्वारा अपने पति की लंबी आयु, अच्छे स्वास्थ्य, जीवन मे सफलता व तरक्की, वैवाहिक जीवन सुखमय एवं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए मनाया जाता है।
आजकल कई जगह कुंवारी कन्याएं भी सुयोग्य वर की कामना के लिए करवा चौथ का व्रत रखती है।
आधुनिक काल मे करवा चौथ पर्व को *पति दिवस* के नाम से भी जाना जाता है।
पूरे देश खासतौर पर उत्तरी भारत मे करवा चौथ पर्व प्रति वर्ष धूमधाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस दिन महिलाएं निराहार व निर्जला उपवास रखती है। तत्पश्चात शाम के समय शुभ मुहूर्त मे चांद निकलने से पूर्व करवा माता की पूजा की जाती है।
रात्रि के समय चांद देखने के बाद चंद्रमा को अर्ध्य देकर अपने पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलती है।
व्रत का पौराणिक इतिहास पौराणिक कथाओ एवं मान्यताओ के अनुसार एक बार देवताओ और दानवो मे युद्ध के दौरान देवताओ की पराजय हो रही थी।
ऐसी स्थिति मे देवता ब्रह्मादेव के पास गये और युद्ध मे विजय होने की प्रार्थना की।
ब्रह्मदेव ने इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओ की पत्नियो को युद्ध मे विजय होने के लिए सच्चे मन से अपने-अपने पतियो के लिए निर्जल व्रत रखने का सुझाव दिया।
इस सुझाव को सभी देवपत्नियो ने खुशी-खुशी स्वीकार करते हुए कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन निर्जला व्रत रखा।
उनकी प्रार्थना स्वीकार हुई और अंततः युद्ध मे देवताओ की विजय हुयी।
सभी देवपत्नियो ने रात्रि मे चंद्रमा को साक्षी मानकर अपने-अपने पति की पूजा करके व्रत खोला।
इस प्रकार से इस करवा चौथ के व्रत की परंपरा देवताओ के समय से ही प्रारंभ हुई।
करवा चौथ की पूजन विधि करवा चौथ की व्रत मे सुहागिन महिलाएं द्वारा निराहार एवं निर्जला व्रत लेकर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्रमा की पूजा अर्चना करने का विधान है।
मिट्टी के पात्र मे चावल, उड़द की दाल, सिंदूर, चूड़ियां, सीसा, कंघी, बिंदी, लड्डू, वस्त्र, फूल, आटे के दिए, रूई, चंदन, अगरबत्ती, दूध, दही, घी इत्यादि रखे जाते है।
कथा सुनने के बाद सासू मां के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया जाता है तथा करवा उन्हें भेंट स्वरूप दी जाती है।
साथ ही साथ देवरानियो, जेठानियो एवं सखियो को भी चूड़ियां, बिंदिया, सिंदूर तथा मिठाइयां बांटी जाती है।
करवा चौथ पर्व मे छलनी वह मेहंदी का महत्व:* पुराणो के अनुसार चंद्रमा को छलनी से अर्ध्य देना शुभ माना जाता है। छलनी का प्रयोग आटा अथवा अन्य चीजो को छानने के लिए किया जाता है, जिससे कि अशुद्धियां अलग हो जाती है।
इसी कारण से सुहागिनो द्वारा करवा चौथ के मौके पर छलनी से चांद को देखकर पति की दीर्घायु व सौभाग्य मे बढ़ोतरी की प्रार्थना की जाती है।
मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है भारत देश मे यह मान्यता है कि जिस लड़की के हाथो मे मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है।
साथ ही साथ यह पति की लंबी आयु व अच्छे स्वास्थ्य को भी दर्शाता है। *करवा चौथ पर्व का महत्व:* मान्यता है कि जो भी सुहागिन महिलाए करवा चौथ का व्रत रखती है उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
करवा चौथ का त्यौहार पति पत्नियों के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है। करवा चौथ की कथा सुनने से घर मे सुख, शांति और समृद्धि आती है। परिवार के सदस्यो के आपसी संबंधो मे भी भावनात्मक दृढ़ता लाता है, जिससे रिश्ते और मजबूत होते है। समाज मे एक स्नेहमय परिवार की स्थापना करने मे करवा चौथ पर्व का विशेष योगदान है। सुहागिन महिलाएं पूर्ण श्रृंगार करके ईश्वर को साक्षी मानकर निर्जल, निराहार व्रत रखकर यह प्रण करती है कि वह मन, वचन व कर्म से पति के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना रखेगी। साथ ही साथ पति आजीवन पत्नी के सुख-दुःख मे साथ निभाने का वचन भी देता है।