सार
Uttarakhand Election 2022: पिछले विधानसभा चुनाव में जीतकर सदन तक आने वाले विधायकों की शैक्षिक योग्यता का रिकॉर्ड इस बात को बयां कर रहा है कि भाजपा-कांग्रेस हो या अन्य दल, शैक्षिक योग्यता किसी की प्राथमिकता नहीं रही।
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इसे विडंबना ही कहेंगे उत्तराखंड में पंचायत चुनाव में 10वीं पास की अनिवार्यता है, लेकिन विधायक अंगूठाछाप भी चलेगा। सभी सियासी दलों के पास विधायक पद के दावेदारों के लिए एक ही पैमाना है उम्मीदवार जिताऊ होना चाहिए।
न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के लिए कोई कानून नहीं बनायाफिलहाल दूसरों के लिए कानून बनाने वालों ने अपनी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के लिए कोई कानून नहीं बनाया है। पिछले विधानसभा चुनाव में जीतकर सदन तक आने वाले विधायकों की शैक्षिक योग्यता का रिकॉर्ड इस बात को बयां कर रहा है कि भाजपा-कांग्रेस हो या अन्य दल, शैक्षिक योग्यता किसी की प्राथमिकता नहीं रही।
2017 के विधानसभा चुनाव में जीते हुए उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता का विश्लेषण करें तो तस्वीर काफी हद तक साफ होती है। उनके नामांकन के दावों के आधार पर स्पष्ट है कि पिछली विधानसभा में दो विधायक आठवीं पास, आठ विधायक 10वीं पास और पांच विधायक 12वीं पास पहुंचे थे।
हालांकि स्वर्गवासी हो चुके विधायकों सहित 24 विधायक ग्रेजुएट, पांच विधायक प्रोफेशनल ग्रेजुएशन, 17 विधायकों के पास पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री थी। तीन विधायक ऐसे भी हैं, जो कि डॉक्टरेट यानी पीएचडी की अर्हता रखते हैं। इन चुने गए प्रत्याशियों में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही ऐसे नेता हैं जो कि 12वीं या इससे कम की योग्यता रखते हैं।
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अगर प्रदेश में पंचायत चुनाव लड़ने वाले सामान्य वर्ग के उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता को देखा जाए तो यहां न्यूनतम 10वीं पास की अनिवार्यता है। पंचायती राज संशोधन विधेयक 2019 से यह बदलाव लागू किया गया था। यहां सामान्य श्रेणी की महिला, अनुसूचित जाति, जनजाति के उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता 8वीं पास रखी गई है। ओबीसी को शैक्षिक योग्यता के मामले में सामान्य श्रेणी के साथ ही रखा गया है।
अनुभवी और जिताऊ हैं तो चलेगा भले ही प्रधान बनने के लिए 10वीं पास की अनिवार्यता हो लेकिन विधायक बनने के लिए कोई शैक्षिक योग्यता की अनिवार्यता नहीं रही है। फिर चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस या फिर अन्य कोई भी दल। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के दो विधायक 10वीं पास, दो विधायक 12वीं पास थे। भाजपा के दो विधायक आठवीं पास, सात विधायक 10वीं पास और तीन विधायक 12वीं पास थे। साफ है कि राजनीतिक दलों के टिकट देने का पैमाना प्रत्याशी की शैक्षिक योग्यता से इतर अनुभव और जिताऊ होना है।
क्यों जरूरी है जनप्रतिनिधि का पढ़ा-लिखा होनाआमतौर पर उत्तराखंड में यह आरोप लगते रहे हैं कि नौकरशाही हावी है, बेलगाम है। वह जनप्रतिनिधियों को अपने हिसाब से गाइड करते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो अगर जन प्रतिनिधियों को नियम-कानूनों का बेहतर ज्ञान होगा तो नौकरशाही उन्हें गुमराह नहीं कर सकती। लिहाजा, यह माना जाता है कि जनप्रतिनिधि अगर पढ़ा लिखा हो तो बेहतर हो सकता है।
कालाढूंगी विधायक बंशीधर भगत और राजपुर विधायक खजानदास।
2017 विधानसभा में यह आठ विधायक हैं 10वीं पासकपकोट विधायक बलवंत सिंह, धारचूला विधायक हरीश सिंह, पिरान कलियर विधायक फुरकान अहमद, लोहाघाट विधायक पूरन सिंह फर्त्याल, काशीपुर विधायक हरभजन सिंह चीमा, थराली विधायक मगन लाल शाह, मसूरी विधायक गणेश जोशी, कर्णप्रयाग विधायक सुरेंद्र सिंह।
-2017 विधानसभा में यह पांच विधायक हैं 12वीं पासपौडी विधायक मुकेश सिंह कौली, जसपुर विधायक आदेश सिंह, बीएचईएल रानीपुर विधायक आदेश चौहान, जागेश्वर विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल, घनशाली विधायक शक्ति लाल शाह।
-2017 विधानसभा में यह 22 विधायक हैं ग्रेजुएशन पासचंपावत विधायक कैलाश चंद्र, द्वाराहाट विधायक महेश सिंह नेगी, रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ, खानपुर विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन, गदरपुर विधायक अरविंद पांडेय, भीमताल विधायक राम सिंह कैड़ा, बागेश्वर विधायक चंदन राम दास, रानीखेत विधायक करन माहरा, अल्मोड़ा विधायक रघुनाथ सिंह चौहान, सहसपुर विधायक सहदेव सिंह पुंडीर, झबरेड़ा विधायक देशराज कर्णवाल, गंगोलीहाट विधायक मीना गंगोला, लक्सर विधायक संजय गुप्ता, लैंसडोन विधायक दिलीप सिंह रावत, लालकुआं विधायक नवीन चंद्र दुम्का, यमकेश्वर विधायक ऋतु खंडूरी भूषण, रुद्रप्रयाग विधायक भरत सिंह, धनोल्टी विधायक प्रीतम सिंह पंवार, धर्मपुर विधायक विनोद चमोली, हरिद्वार विधायक मदन कौशिक, मंगलौर विधायक काजी निजामुद्दीन, किच्छा विधायक राजेश शुक्ला।
-यह पांच विधायक हैं ग्रेजुएशन प्रोफेशनल कोर्स धारकदेहरादून कैंट विधायक हरबंस कपूर, चकराता विधायक प्रीतम सिंह, सितारगंज विधायक सौरभ बहुगुणा, यमुनोत्री विधायक केदार सिंह, खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी।
-यह 17 विधायक हैं पोस्ट ग्रेजुएटनरेंद्रनगर विधायक सुबोध उनियाल, सोमेश्वर विधायक रेखा आर्य, विकासनगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान, बदरीनाथ विधायक महेंद्र प्रसाद, टिहरी विधायक धन सिंह नेगी, देवप्रयाग विधायक विनोद कंडारी, हरिद्वार ग्रामीण विधायक यतीश्वरानंद, प्रतापनगर विधायक विजय सिंह पंवार, डोईवाला विधायक त्रिवेंद्र सिंह रावत, भगवानपुर विधायक ममता राकेश, रुड़की विधायक प्रदीप बत्रा, रामनगर विधायक दीवान सिंह बिष्ट, केदारनाथ विधायक मनोज रावत, रुद्रपुर विधायक राजकुमार ठुकराल, ऋषिकेश विधायक प्रेमचंद अग्रवाल, डीडीहाट विधायक विशन सिंह, ज्वालापुर विधायक सुरेश राठौर।
-यह विधायक हैं पीएचडी धारकनानकमत्ता विधायक प्रेम सिंह, कोटद्वार विधायक डॉ. हरक सिंह रावत और श्रीनगर विधायक डॉ. धन सिंह रावत।(चौबट्टाखाल विधायक सतपाल महाराज की शैक्षिक योग्यता की जानकारी नहीं)
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इसे विडंबना ही कहेंगे उत्तराखंड में पंचायत चुनाव में 10वीं पास की अनिवार्यता है, लेकिन विधायक अंगूठाछाप भी चलेगा। सभी सियासी दलों के पास विधायक पद के दावेदारों के लिए एक ही पैमाना है उम्मीदवार जिताऊ होना चाहिए।
न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के लिए कोई कानून नहीं बनाया
फिलहाल दूसरों के लिए कानून बनाने वालों ने अपनी न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के लिए कोई कानून नहीं बनाया है। पिछले विधानसभा चुनाव में जीतकर सदन तक आने वाले विधायकों की शैक्षिक योग्यता का रिकॉर्ड इस बात को बयां कर रहा है कि भाजपा-कांग्रेस हो या अन्य दल, शैक्षिक योग्यता किसी की प्राथमिकता नहीं रही।
2017 के विधानसभा चुनाव में जीते हुए उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता का विश्लेषण करें तो तस्वीर काफी हद तक साफ होती है। उनके नामांकन के दावों के आधार पर स्पष्ट है कि पिछली विधानसभा में दो विधायक आठवीं पास, आठ विधायक 10वीं पास और पांच विधायक 12वीं पास पहुंचे थे।
हालांकि स्वर्गवासी हो चुके विधायकों सहित 24 विधायक ग्रेजुएट, पांच विधायक प्रोफेशनल ग्रेजुएशन, 17 विधायकों के पास पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री थी। तीन विधायक ऐसे भी हैं, जो कि डॉक्टरेट यानी पीएचडी की अर्हता रखते हैं। इन चुने गए प्रत्याशियों में भाजपा और कांग्रेस दोनों के ही ऐसे नेता हैं जो कि 12वीं या इससे कम की योग्यता रखते हैं।
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