सार
स्वार्थ, प्रपंच और लोभ में लिपटी सियासत से खुद को बचाते हुए सरलता, सज्जनता और मिलनसार जनप्रतिनिधि की जो मिसाल हरबंस कपूर ने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में पेश की, वो अपने आप में अनूठी है।
पीएम मोदी के साथ हरबंस कपूर
– फोटो : फाइल फोटो
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उत्तराखंड की राजनीति में सबसे वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर नहीं रहे। चुनावी पिच पर नॉट आउट रहकर कपूर अपने पीछे लगातार आठ बार विधानसभा का चुनाव जीतने का रिकार्ड छोड़ गए हैं। अपने चुनाव क्षेत्र कैंट में उनकी मजबूत पकड़ का ही नतीजा है कि बीमार और उम्रदराज होने पर कपूर इस बार चुनाव मैदान में उतरने को लेकर अनिच्छुक थे, लेकिन पार्टी एक बार फिर उन्हीं पर दांव लगाने का मन बना चुकी थी। उनके जाने से भाजपा को सिर्फ सियासी नुकसान नहीं हुआ, बल्कि राजनीति के जिस बरगद की छत्रछाया में पार्टी फली फूली, वो बरगद गिर गया।
प्रतिद्वंद्वियों को रश्क भी था और सम्मान भीप्रदेश के सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को कपूर की विदाई ने शोकाकुल किया है। कपूर सरीखे राजनेता के लिए यह मायूसी लाजिमी है। करीब 32 सालों से लोगों के दिलों में हरबंस कपूर के लिए जो जगह रही, उस पर उनके प्रतिद्वंद्वियों को हमेशा रश्क रहा। लेकिन कपूर के लिए भरपूर सम्मान भी।
Harbans Kapoor Death: हरबंस कपूर के नाम है लगातार एक ही क्षेत्र से आठ बार विधायक रहने का रिकॉर्ड, पढ़ें उनके जीवन की खास बातें
सरल, सज्जन और मिलनसार कपूरस्वार्थ, प्रपंच और लोभ में लिपटी सियासत से खुद को बचाते हुए सरलता, सज्जनता और मिलनसार जनप्रतिनिधि की जो मिसाल कपूर ने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में पेश की, वो अपने आप में अनूठी है। अपनी इन्हीं खूबियों की वजह देहरादून और देहरादून कैंट की जनता ने कपूर को बार-बार चुना। एक बार चुनाव जीतने के बाद दूसरी बार चुनाव में लड़ना और जीतना आसान नहीं होता। लेकिन कपूर एक नहीं पूरे आठ बार चुनाव मैदान में उतरे और हर बार उनकी विधानसभा के लोगों ने उन्हें विधानसभा भेजा।
भाजपा के लिए अनूठी थी 1989 में कपूर की जीत उत्तरप्रदेश के समय 1989 में भाजपा के लिए हरबंस कपूर की देहरादून विधानसभा सीट से जीत गौरव की बात थी। केवल इसलिए नहीं कि उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज हीरा सिंह बिष्ट को हराया था। उनकी जीत इस मायने में अनूठी थी कि भाजपा की स्थापना के नौ वर्ष के अंतराल में कपूर उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी के 18 जिलों में चुनाव जीतने वाले अकेले प्रत्याशी थे।
मंत्री रहे या विधायक हमेशा कार्यकर्ता रहेहरबंस कपूर के लगातार चुनाव जीतने का मंत्र क्या था, इस प्रश्न के उत्तर में 1989 में उनके चुनाव संयोजक रहे और उनके करीबी रहे भाजपा नेता प्रकाश सुमन ध्यानी कहते हैं, हमेश कार्यकर्ता की भूमिका में रहना। हरबंस कपूर मंत्री रहे हों या विधायक, उन्होंने खुद को हमेशा एक कार्यकर्ता के तौर पर पेश किया।
पद मिला तो गुमान नहीं, नहीं मिला तो मलाल नहीं
उत्तराखंड राज्य गठन के बाद हरबंस कपूर भाजपा के सबसे वरिष्ठ विधायकों में से थे। पांच बार के विधायक रहे कपूर को तब मुख्यमंत्री के दावेदारों में गिना गया। लेकिन पार्टी ने नित्यानंद स्वामी को सत्ता की बागडोर सौंपी। लेकिन कपूर के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उन्होंने पार्टी के फैसले को सिर माथे पर रखा। जब वह 1991-92 में कल्याण सिंह की सरकार में ग्राम्य विकास, श्रम, एवं सेवायोजन राज्यमंत्री रहे। यूपी सरकार में राज्यमंत्री होने का कपूर को कभी गुमान नहीं रहा। 2017 में जब पार्टी की सरकार बनीं तब भी मंत्री न बनाए जाने के लेकर कपूर के चेहरे पर कोई मलाल नहीं था।
85 में चुनाव लड़ा तो पार्टी के कोषाध्यक्ष थे1985 में भाजपा ने हरबंस कपूर को चुनाव मैदान में उतारा उस वक्त वह महानगर भाजपा के कोषाध्यक्ष होते थे। कपूर कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट से चुनाव हार गए। लेकिन पांच साल उन्होंने जमकर मेहनत की और अगले चुनाव में उन्होंने बिष्ट को पराजित कर दिया।
सुबह कोई रूठा तो शाम को मनाने घर पहुंच जातेकार्यकर्ताओं को खुद से जोड़े रखने की कपूर की गजब की खूबी थी। सुबह कोई कार्यकर्ता किसी वजह से रूठ जाता तो कपूर शाम को उसे मनाने घर पहुंच जाते। न कोई गिला न कोई शिकवा। कार्यकर्ताओं और क्षेत्रवासियों से उनका निरंतर संवाद आज की पीढ़ी के नेताओं के लिए एक प्रेरणा है।
निर्विवाद रहे, बेदाग रहेहरबंस कपूर भाजपा के उन गिनती के नेताओं में से हैं जिनका नाम कभी किसी विवाद नहीं जुड़ा। उन्हें यूपी सरकार में मंत्री बनने का अवसर मिला। अंतरिम सरकार में भी वह मंत्री रहे। विधानसभा अध्यक्ष के पद पर भी रहे। लेकिन अपनी छवि को उन्होंने हमेशा बेदाग बनाए रखा।
देहरादून सीट से अजेय हरबंस कपूर1989 में कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट को हराया1991 में कांग्रेस के विनोद चंदोला को हराया1993 में कांग्रेस के दिनेश अग्रवाल को हराया1996 में फिर कांग्रेस के दिनेश अग्रवाल को हराया2002 में कांग्रेस के संजय शर्मा को हराया2007 में कांग्रेस के लाल चंद शर्मा को हराया2012 में कांग्रेस के देवेंद्र सिंह सेठी को हराया2017 में कांग्रेस के सूर्यकांत धस्माना को हराया
विस्तार
उत्तराखंड की राजनीति में सबसे वरिष्ठ विधायक हरबंस कपूर नहीं रहे। चुनावी पिच पर नॉट आउट रहकर कपूर अपने पीछे लगातार आठ बार विधानसभा का चुनाव जीतने का रिकार्ड छोड़ गए हैं। अपने चुनाव क्षेत्र कैंट में उनकी मजबूत पकड़ का ही नतीजा है कि बीमार और उम्रदराज होने पर कपूर इस बार चुनाव मैदान में उतरने को लेकर अनिच्छुक थे, लेकिन पार्टी एक बार फिर उन्हीं पर दांव लगाने का मन बना चुकी थी। उनके जाने से भाजपा को सिर्फ सियासी नुकसान नहीं हुआ, बल्कि राजनीति के जिस बरगद की छत्रछाया में पार्टी फली फूली, वो बरगद गिर गया।
प्रतिद्वंद्वियों को रश्क भी था और सम्मान भी
प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को कपूर की विदाई ने शोकाकुल किया है। कपूर सरीखे राजनेता के लिए यह मायूसी लाजिमी है। करीब 32 सालों से लोगों के दिलों में हरबंस कपूर के लिए जो जगह रही, उस पर उनके प्रतिद्वंद्वियों को हमेशा रश्क रहा। लेकिन कपूर के लिए भरपूर सम्मान भी।
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सरल, सज्जन और मिलनसार कपूर
स्वार्थ, प्रपंच और लोभ में लिपटी सियासत से खुद को बचाते हुए सरलता, सज्जनता और मिलनसार जनप्रतिनिधि की जो मिसाल कपूर ने अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में पेश की, वो अपने आप में अनूठी है। अपनी इन्हीं खूबियों की वजह देहरादून और देहरादून कैंट की जनता ने कपूर को बार-बार चुना। एक बार चुनाव जीतने के बाद दूसरी बार चुनाव में लड़ना और जीतना आसान नहीं होता। लेकिन कपूर एक नहीं पूरे आठ बार चुनाव मैदान में उतरे और हर बार उनकी विधानसभा के लोगों ने उन्हें विधानसभा भेजा।
भाजपा के लिए अनूठी थी 1989 में कपूर की जीत
उत्तरप्रदेश के समय 1989 में भाजपा के लिए हरबंस कपूर की देहरादून विधानसभा सीट से जीत गौरव की बात थी। केवल इसलिए नहीं कि उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज हीरा सिंह बिष्ट को हराया था। उनकी जीत इस मायने में अनूठी थी कि भाजपा की स्थापना के नौ वर्ष के अंतराल में कपूर उत्तराखंड और पश्चिमी यूपी के 18 जिलों में चुनाव जीतने वाले अकेले प्रत्याशी थे।
मंत्री रहे या विधायक हमेशा कार्यकर्ता रहे
हरबंस कपूर के लगातार चुनाव जीतने का मंत्र क्या था, इस प्रश्न के उत्तर में 1989 में उनके चुनाव संयोजक रहे और उनके करीबी रहे भाजपा नेता प्रकाश सुमन ध्यानी कहते हैं, हमेश कार्यकर्ता की भूमिका में रहना। हरबंस कपूर मंत्री रहे हों या विधायक, उन्होंने खुद को हमेशा एक कार्यकर्ता के तौर पर पेश किया।