सार
कैंट विधानसभा सीट पर जीत 32 साल से कांग्रेस के लिए एक सपना है। कांग्रेस ने तमाम बड़े नेता मैदान में उतारे, लेकिन कोई भी हरबंस कपूर को नहीं हरा पाया।
हरबंस कपूर
– फोटो : अमर उजाला फाइल फोटो
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पहले देहरादून विधानसभा सीट से चार बार और फिर देहरादून कैंट विधानसभा से लगातार चार बार विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री हरबंस कपूर के निधन के साथ ही कैंट सीट पर अब विरासत संभालने को लेकर चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली कैंट विधानसभा में इस बात की ज्यादा संभावना है कि परिवार के ही किसी सदस्य पर भरोसा किया जाए। हालांकि भाजपा वक्त आने पर अपने पत्ते खोलेगी।
कांग्रेस ने तमाम बड़े नेता मैदान में उतारे लेकिन हरबंस कपूर को नहीं हरा पाएकैंट विधानसभा सीट पर जीत 32 साल से कांग्रेस के लिए एक सपना है। कांग्रेस ने तमाम बड़े नेता मैदान में उतारे लेकिन कोई भी हरबंस कपूर को नहीं हरा पाया। 1989 में कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट, 1991 में विनोद, 1993 और 1996 में दिनेश अग्रवाल, 2002 में संजय शर्मा, 2007 में लालचंद शर्मा, 2012 में देवेंद्र सिंह सेठी और 2017 में सूर्यकांत धस्माना को हराकर रिकॉर्ड कायम करने वाले हरबंस कपूर की कुर्सी खाली हो चुकी है। चूंकि कैंट विधानसभा में भाजपा के करीब दस दावेदार हैं, इसलिए अंदरखाने पार्टी आगामी चुनाव में भी हरबंस कपूर को ही टिकट देने की तैयारी में थी। अचानक उनके निधन से भाजपा को बड़ा झटका लगा है।
Harbans Kapoor Death: हरबंस कपूर के नाम है लगातार एक ही क्षेत्र से आठ बार विधायक रहने का रिकॉर्ड, पढ़ें उनके जीवन की खास बातें
अब सवाल हवाओं में तैर रहे हैं कि भाजपा टिकट किसे देगी। हरबंस कपूर के परिवार के नजरिए से देखें तो उनकी पत्नी सविता कपूर मजबूत दावेदार कही जा सकती हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, पत्नी की दावेदारी की दो प्रमुख वजह हैं। एक वजह तो यह है कि वह पति के साथ ही लगातार सामाजिक संगठनों, कार्यक्रमों का हिस्सा बनी रही हैं। दूसरी यह है कि संघ में भी उनकी अच्छी पकड़ है। परिवार में दूसरा विकल्प उनका बेटा अमित कपूर है। परिवार के दोनों सदस्यों के लिए सकारात्मक बिंदु यह भी है कि विधायक कपूर के निधन से सिम्पैथी वोट भी मिलेगा। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि पार्टी, कपूर परिवार को ही विरासत सौंपेगी या किसी अन्य को मैदान में उतारेगी।
2002
हरबंस कपूर-13977 वोट, संजय शर्मा- 11053 वोट, जीत का अंतर-2924
2007हरबंस कपूर- 23856 वोट, लालचंद – 16823 वोट, जीत का अंतर-7033
2012हरबंस कपूर- 29719 वोट, देवेंद्र सिंह सेठी- 24624 वोट, जीत का अंतर-5095
2017हरबंस कपूर- 41142 वोट, सूर्यकांत धस्माना- 24472 वोट, जीत का अंतर- 16670
यह समय गमगीन माहौल का है। कैंट विधानसभा सीट पर भविष्य को लेकर चर्चा करने का नहीं है। भविष्य में इस पर बात की जाएगी।-मदन कौशिक, प्रदेश अध्यक्ष, भाजपा
विस्तार
पहले देहरादून विधानसभा सीट से चार बार और फिर देहरादून कैंट विधानसभा से लगातार चार बार विधायक रहे पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एवं पूर्व मंत्री हरबंस कपूर के निधन के साथ ही कैंट सीट पर अब विरासत संभालने को लेकर चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जाने वाली कैंट विधानसभा में इस बात की ज्यादा संभावना है कि परिवार के ही किसी सदस्य पर भरोसा किया जाए। हालांकि भाजपा वक्त आने पर अपने पत्ते खोलेगी।
कांग्रेस ने तमाम बड़े नेता मैदान में उतारे लेकिन हरबंस कपूर को नहीं हरा पाए
कैंट विधानसभा सीट पर जीत 32 साल से कांग्रेस के लिए एक सपना है। कांग्रेस ने तमाम बड़े नेता मैदान में उतारे लेकिन कोई भी हरबंस कपूर को नहीं हरा पाया। 1989 में कांग्रेस के हीरा सिंह बिष्ट, 1991 में विनोद, 1993 और 1996 में दिनेश अग्रवाल, 2002 में संजय शर्मा, 2007 में लालचंद शर्मा, 2012 में देवेंद्र सिंह सेठी और 2017 में सूर्यकांत धस्माना को हराकर रिकॉर्ड कायम करने वाले हरबंस कपूर की कुर्सी खाली हो चुकी है। चूंकि कैंट विधानसभा में भाजपा के करीब दस दावेदार हैं, इसलिए अंदरखाने पार्टी आगामी चुनाव में भी हरबंस कपूर को ही टिकट देने की तैयारी में थी। अचानक उनके निधन से भाजपा को बड़ा झटका लगा है।
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अब सवाल हवाओं में तैर रहे हैं कि भाजपा टिकट किसे देगी। हरबंस कपूर के परिवार के नजरिए से देखें तो उनकी पत्नी सविता कपूर मजबूत दावेदार कही जा सकती हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, पत्नी की दावेदारी की दो प्रमुख वजह हैं। एक वजह तो यह है कि वह पति के साथ ही लगातार सामाजिक संगठनों, कार्यक्रमों का हिस्सा बनी रही हैं। दूसरी यह है कि संघ में भी उनकी अच्छी पकड़ है। परिवार में दूसरा विकल्प उनका बेटा अमित कपूर है। परिवार के दोनों सदस्यों के लिए सकारात्मक बिंदु यह भी है कि विधायक कपूर के निधन से सिम्पैथी वोट भी मिलेगा। अब यह आने वाला समय ही बताएगा कि पार्टी, कपूर परिवार को ही विरासत सौंपेगी या किसी अन्य को मैदान में उतारेगी।